चश्म-ए-इंकार में इक़रार भी हो सकता था
छेड़ने को मुझे फिर मेरी अना पूछती है
असअ'द बदायुनी
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चमन वही कि जहाँ पर लबों के फूल खिलें
बदन वही कि जहाँ रात हो गवारा भी
असअ'द बदायुनी
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बिछड़ के तुझ से किसी दूसरे पे मरना है
ये तजरबा भी इसी ज़िंदगी में करना है
असअ'द बदायुनी
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बहुत से लोगों को मैं भी ग़लत समझता हूँ
बहुत से लोग मुझे भी बुरा बताते हैं
असअ'द बदायुनी
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