जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर
वो तस्वीर बातें बनाने लगी
आदिल मंसूरी
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जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्वीर हर इक दिल से लगी थी
अहमद फ़राज़
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कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती
धूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते
अहमद मुश्ताक़
अलमारी में तस्वीरें रखता हूँ
अब बचपन और बुढ़ापा एक हुए
अख़्तर होशियारपुरी
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आ कि मैं देख लूँ खोया हुआ चेहरा अपना
मुझ से छुप कर मिरी तस्वीर बनाने वाले
अख़्तर सईद ख़ान
सूरत छुपाइए किसी सूरत-परस्त से
हम दिल में नक़्श आप की तस्वीर कर चुके
अनवर देहलवी
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वो अयादत को तो आया था मगर जाते हुए
अपनी तस्वीरें भी कमरे से उठा कर ले गया
अर्श सिद्दीक़ी