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जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी | शाही शायरी
jis se ye tabiat baDi mushkil se lagi thi

ग़ज़ल

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी

अहमद फ़राज़

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जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्वीर हर इक दिल से लगी थी

तन्हाई में रोते हैं कि यूँ दिल को सुकूँ हो
ये चोट किसी साहब-ए-महफ़िल से लगी थी

ऐ दिल तिरे आशोब ने फिर हश्र जगाया
बेदर्द अभी आँख भी मुश्किल से लगी थी

ख़िल्क़त का अजब हाल था उस कू-ए-सितम में
साए की तरह दामन-ए-क़ातिल से लगी थी

उतरा भी तो कब दर्द का चढ़ता हुआ दरिया
जब कश्ती-ए-जाँ मौत के साहिल से लगी थी