प्यार गया तो कैसे मिलते रंग से रंग और ख़्वाब से ख़्वाब
एक मुकम्मल घर के अंदर हर तस्वीर अधूरी थी
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
आता था जिस को देख के तस्वीर का ख़याल
अब तो वो कील भी मिरी दीवार में नहीं
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
रौशनी ने कभी साया नहीं देखा अपना
इक़बाल अशहर
कल तेरी तस्वीर मुकम्मल की मैं ने
फ़ौरन उस पर तितली आ कर बैठ गई
इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में
शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है
जावेद अख़्तर
तस्वीर के दो रुख़ हैं जाँ और ग़म-ए-जानाँ
इक नक़्श छुपाना है इक नक़्श दिखाना है
जिगर मुरादाबादी