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Tasweer शायरी | शाही शायरी

Tasweer

41 शेर

प्यार गया तो कैसे मिलते रंग से रंग और ख़्वाब से ख़्वाब
एक मुकम्मल घर के अंदर हर तस्वीर अधूरी थी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर




आता था जिस को देख के तस्वीर का ख़याल
अब तो वो कील भी मिरी दीवार में नहीं

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही




तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं

इमाम बख़्श नासिख़




सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
रौशनी ने कभी साया नहीं देखा अपना

इक़बाल अशहर




कल तेरी तस्वीर मुकम्मल की मैं ने
फ़ौरन उस पर तितली आ कर बैठ गई

इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’




इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में
शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है

जावेद अख़्तर




तस्वीर के दो रुख़ हैं जाँ और ग़म-ए-जानाँ
इक नक़्श छुपाना है इक नक़्श दिखाना है

जिगर मुरादाबादी