कहीं कोई चराग़ जलता है
कुछ न कुछ रौशनी रहेगी अभी
अबरार अहमद
नई सहर के हसीन सूरज तुझे ग़रीबों से वास्ता क्या
जहाँ उजाला है सीम-ओ-ज़र का वहीं तिरी रौशनी मिलेगी
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
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बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में
फ़साद पैदा हुआ रौशनी के आने से
आलम ख़ुर्शीद
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देते नहीं सुझाई जो दुनिया के ख़त्त-ओ-ख़ाल
आए हैं तीरगी में मगर रौशनी से हम
अंजुम रूमानी
उल्फ़त का है मज़ा कि 'असर' ग़म भी साथ हों
तारीकियाँ भी साथ रहें रौशनी के साथ
असर अकबराबादी
रौशनी जब से मुझे छोड़ गई
शम्अ रोती है सिरहाने मेरे
असग़र वेलोरी
रौशनी फैली तो सब का रंग काला हो गया
कुछ दिए ऐसे जले हर-सू अंधेरा हो गया
आज़ाद गुलाटी