घुटन तो दिल की रही क़स्र-ए-मरमरीं में भी
न रौशनी से हुआ कुछ न कुछ हवा से हुआ
ख़ालिद हसन क़ादिरी
रौशनी की अगर अलामत है
राख उड़ती है क्यूँ शरारे पर
ख़ालिद मलिक साहिल
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घुटन तो दिल की रही क़स्र-ए-मरमरीं में भी
न रौशनी से हुआ कुछ न कुछ हवा से हुआ
ख़ालिद हसन क़ादिरी
रौशनी की अगर अलामत है
राख उड़ती है क्यूँ शरारे पर
ख़ालिद मलिक साहिल