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Raushni शायरी | शाही शायरी

Raushni

16 शेर

नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे

बशीर बद्र




अंधेरों को निकाला जा रहा है
मगर घर से उजाला जा रहा है

फ़ना निज़ामी कानपुरी




चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है
अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है

फ़रहत एहसास




घर से बाहर नहीं निकला जाता
रौशनी याद दिलाती है तिरी

फ़ुज़ैल जाफ़री




रौशनी में अपनी शख़्सियत पे जब भी सोचना
अपने क़द को अपने साए से भी कम-तर देखना

हिमायत अली शाएर




रौशन-दान से धूप का टुकड़ा आ कर मेरे पास गिरा
और फिर सूरज ने कोशिश की मुझ से आँख मिलाने की

हुमैरा रहमान




रौशनी मुझ से गुरेज़ाँ है तो शिकवा भी नहीं
मेरे ग़म-ख़ाने में कुछ ऐसा अँधेरा भी नहीं

इक़बाल अज़ीम