EN اردو
तुझ से वाबस्तगी रहेगी अभी | शाही शायरी
tujhse wabastagi rahegi abhi

ग़ज़ल

तुझ से वाबस्तगी रहेगी अभी

अबरार अहमद

;

तुझ से वाबस्तगी रहेगी अभी
दिल को ये बेकली रहेगी अभी

सर को दीवार ही नहीं मिलती
सो ये दीवानगी रहेगी अभी

कोई दिन फ़ुर्सत-ए-तमन्ना है
कोई दिन सर ख़ुशी रहेगी अभी

कासा-ए-उम्र भर चुका फिर भी
कहीं कोई कमी रहेगी अभी

शब वही है जमाल-ए-ख़्वाब वही
आँख अपनी लगी रहेगी अभी

जिस क़यामत की आमद आमद है
वो क़यामत टली रहेगी अभी

हम यक़ीनन यहाँ नहीं होंगे
ग़ालिबन ज़िंदगी रहेगी अभी

कुछ अभी रंज-ए-आरज़ू है हमें
आँख में कुछ नमी रहेगी अभी

तू अभी मुब्तला-ए-दुनिया नहीं
तुझ में ये सादगी रहेगी अभी

ला-तअल्लुक़ हूँ उस तअ'ल्लुक़ से
और ये दोस्ती रहेगी अभी

जी उचटता नहीं है लगता नहीं
सो ये बेगानगी रहेगी अभी

कहीं कोई चराग़ जलता है
कुछ न कुछ रौशनी रहेगी अभी