अजीब बात है कीचड़ में लहलहाए कँवल
फटे पुराने से जिस्मों पे सज के रेशम आए
इब्न-ए-सफ़ी
बिल-आख़िर थक हार के यारो हम ने भी तस्लीम किया
अपनी ज़ात से इश्क़ है सच्चा बाक़ी सब अफ़्साने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
बुझ गया दिल तो ख़राबी हुई है
फिर किसी शोला-जबीं से मिलिए
इब्न-ए-सफ़ी
चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है
चाँद पर चाँदनी नहीं होती
इब्न-ए-सफ़ी
देख कर मेरा दश्त-ए-तन्हाई
रंग-ए-रू-ए-बहार उतरा है
इब्न-ए-सफ़ी
दिल सा खिलौना हाथ आया है
खेलो तोड़ो जी बहलाओ
इब्न-ए-सफ़ी
दिन के भूले को रात डसती है
शाम को वापसी नहीं होती
इब्न-ए-सफ़ी
डूब जाने की लज़्ज़तें मत पूछ
कौन ऐसे में पार उतरा है
इब्न-ए-सफ़ी
हुस्न बना जब बहती गंगा
इश्क़ हुआ काग़ज़ की नाव
इब्न-ए-सफ़ी