ज़ेहन से दिल का बार उतरा है
पैरहन तार तार उतरा है
डूब जाने की लज़्ज़तें मत पूछ
कौन ऐसे में पार उतरा है
तर्क-ए-मय कर के भी बहुत पछताए
मुद्दतों में ख़ुमार उतरा है
देख कर मेरा दश्त-ए-तन्हाई
रंग-ए-रू-ए-बहार उतरा है
पिछली शब चाँद मेरे साग़र में
पय-ब-पय बार बार उतरा है
ग़ज़ल
ज़ेहन से दिल का बार उतरा है
इब्न-ए-सफ़ी