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हमीद जालंधरी शायरी | शाही शायरी

हमीद जालंधरी शेर

7 शेर

आने लगे हैं वो भी अयादत के वास्ते
ऐ चारागर मरीज़ को अच्छा किया न जाए

हमीद जालंधरी




भूली नहीं उजड़े हुए गुलशन की बहारें
हाँ याद हैं वो दिन कि हमारा भी ख़ुदा था

हमीद जालंधरी




हुई मुद्दत कि उन को ख़्वाब में भी अब नहीं देखा
मैं जिन गलियों में अपने दोस्तों के साथ खेला था

हमीद जालंधरी




किस शान से गए हैं शहीदान-ए-कू-ए-यार
क़ातिल भी हाथ उठा के शरीक-ए-दुआ हुए

हमीद जालंधरी




फिर गई इक और ही दुनिया नज़र के सामने
बैठे बैठे क्या बताऊँ क्या मुझे याद आ गया

हमीद जालंधरी




सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा
ये आग वो है जिस को दबाया न जाएगा

हमीद जालंधरी




उन की जफ़ाओं पर भी वफ़ा का हुआ गुमाँ
अपनी वफ़ाओं को भी फ़रामोश कर दिया

हमीद जालंधरी