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ऐ दोस्त दर्द-ए-दिल का मुदावा किया न जाए | शाही शायरी
ai dost dard-e-dil ka mudawa kiya na jae

ग़ज़ल

ऐ दोस्त दर्द-ए-दिल का मुदावा किया न जाए

हमीद जालंधरी

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ऐ दोस्त दर्द-ए-दिल का मुदावा किया न जाए
व'अदा अगर किया है तो ईफ़ा किया न जाए

आने लगे हैं वो भी अयादत के वास्ते
ऐ चारागर मरीज़ को अच्छा किया न जाए

मजबूरियों के राज़ न खुल जाएँ ब'अद-ए-मर्ग
क़ातिल हमारे क़त्ल का चर्चा किया न जाए

आएगी अपने लब पे तो होगी पराई बात
लाज़िम है राज़-ए-दिल कभी इफ़शा किया न जाए

वो ख़ुद ही जान लेंगे मिरे दिल का मुद्दआ
बेहतर यही है अर्ज़-ए-तमन्ना किया न जाए