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हादी मछलीशहरी शायरी | शाही शायरी

हादी मछलीशहरी शेर

15 शेर

अब क्यूँ गिला रहेगा मुझे हिज्र-ए-यार का
बे-ताबियों से लुत्फ़ उठाने लगा हूँ मैं

हादी मछलीशहरी




अब वो पीरी में कहाँ अहद-ए-जवानी की उमंग
रंग मौजों का बदल जाता है साहिल के क़रीब

हादी मछलीशहरी




अश्क-ए-ग़म उक़्दा-कुशा-ए-ख़लिश-ए-जाँ निकला
जिस को दुश्वार मैं समझा था वो आसाँ निकला

हादी मछलीशहरी




बेदर्द मुझ से शरह-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी न पूछ
काफ़ी है इस क़दर कि जिए जा रहा हूँ मैं

हादी मछलीशहरी




दिल-ए-सरशार मिरा चश्म-ए-सियह-मस्त तिरी
जज़्बा टकरा दे न पैमाने से पैमाने को

हादी मछलीशहरी




ग़म-ए-दिल अब किसी के बस का नहीं
क्या दवा क्या दुआ करे कोई

हादी मछलीशहरी




ग़ज़ब है ये एहसास वारस्तगी का
कि तुझ से भी ख़ुद को बरी चाहता हूँ

हादी मछलीशहरी




हर मुसीबत थी मुझे ताज़ा पयाम-ए-आफ़ियत
मुश्किलें जितनी बढ़ीं उतनी ही आसाँ हो गईं

हादी मछलीशहरी




लुत्फ़-ए-जफ़ा इसी में है याद-ए-जफ़ा न आए फिर
तुझ को सितम का वास्ता मुझ को मिटा के भूल जा

हादी मछलीशहरी