महव-ए-कमाल-ए-आरज़ू मुझ को बना के भूल जा
अपने हरीम-ए-नाज़ का पर्दा उठा के भूल जा
जल्वा है बे-ख़ुदी-तलब इश्क़ है हिम्मत-आज़मा
दीदा-ए-मस्त यार से आँख मिला के भूल जा
लुत्फ़-ए-जफ़ा इसी में है याद-ए-जफ़ा न आए फिर
तुझ को सितम का वास्ता मुझ को मिटा के भूल जा
लौस-ए-तलब के नंग से इश्क़ को बे-नियाज़ रख
हो भी जो कोई आरज़ू दिल से मिटा के भूल जा
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ग़ज़ल
महव-ए-कमाल-ए-आरज़ू मुझ को बना के भूल जा
हादी मछलीशहरी