EN اردو
उस बेवफ़ा की बज़्म से चश्म-ए-ख़याल में | शाही शायरी
us bewafa ki bazm se chashm-e-KHayal mein

ग़ज़ल

उस बेवफ़ा की बज़्म से चश्म-ए-ख़याल में

हादी मछलीशहरी

;

उस बेवफ़ा की बज़्म से चश्म-ए-ख़याल में
इक ख़्वाब आरज़ू का लिए जा रहा हूँ मैं

दिल को निगाह-ए-यार के नश्तर से छेड़ कर
बेदार आरज़ू को किए जा रहा हूँ मैं

बेदर्द मुझ से शरह-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी न पूछ
काफ़ी है इस क़दर कि जिए जा रहा हूँ मैं

दो दिन की उम्र वो भी मिली थी ब-क़ैद-ए-ग़म
ये शिकवा हर नफ़्स में किए जा रहा हूँ मैं