मिरा वजूद हक़ीक़त मिरा अदम धोका
फ़ना की शक्ल में सर-चश्मा-ए-बक़ा हूँ मैं
हादी मछलीशहरी
तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़
किस से किस का गिला करे कोई
हादी मछलीशहरी
तू है बहार तो दामन मिरा हो क्यूँ ख़ाली
इसे भी भर दे गुलों से तुझे ख़ुदा की क़सम
हादी मछलीशहरी
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उस ने इस अंदाज़ से देखा मुझे
ज़िंदगी भर का गिला जाता रहा
हादी मछलीशहरी
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उठने को तो उठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन
अब दिल को ये धड़का है जाऊँ तो किधर जाऊँ
हादी मछलीशहरी
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वो पूछते हैं दिल-ए-मुब्तला का हाल और हम
जवाब में फ़क़त आँसू बहाए जाते हैं
हादी मछलीशहरी
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