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मंज़िल-ए-दिल मिली कहाँ ख़त्म-ए-सफ़र के बाद भी | शाही शायरी
manzil-e-dil mili kahan KHatm-e-safar ke baad bhi

ग़ज़ल

मंज़िल-ए-दिल मिली कहाँ ख़त्म-ए-सफ़र के बाद भी

अली जव्वाद ज़ैदी

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मंज़िल-ए-दिल मिली कहाँ ख़त्म-ए-सफ़र के बाद भी
रहगुज़र एक और थी राहगुज़र के बाद भी

आज तिरे सवाल पर फिर मिरे लब ख़मोश हैं
ऐसी ही कशमकश थी कुछ पहली नज़र के बाद भी

दिल में थे लाख वसवसे जल्वा-ए-आफ़्ताब तक
रह गई थी जो तीरगी नूर-ए-सहर के बाद भी

नासेह-ए-मस्लहत-नवाज़ तुझ को बताऊँ क्या ये राज़
हौसला-ए-निगाह है ख़ून-ए-जिगर के बाद भी

हार के भी नहीं मिटी दिल से ख़लिश हयात की
कितने निज़ाम मिट गए जश्न-ए-ज़फ़र के बाद भी

कोई मिरा ही आशियाँ हासिल-ए-फ़स्ल-ए-गुल न था
हाँ ये बहार है बहार रक़्स-ए-शरर के बाद भी

एक तुम्हारी याद ने लाख दिए जलाए हैं
आमद-ए-शब के क़ब्ल भी ख़त्म-ए-सहर के बाद भी