अश्क-बारी न मिटी सीना-फ़िगारी न गई
लाला-कारी किसी सूरत भी हमारी न गई
कूचा-ए-हुस्न छुटा तो हुए रुस्वा-ए-शराब
अपनी क़िस्मत में जो लिक्खी थी वो ख़्वारी न गई
उन की मस्ताना निगाहों का नहीं कोई क़ुसूर
नासेहो ज़िंदगी ख़ुद हम से सँवारी न गई
चश्म-ए-महज़ूँ पे न लहराई वो ज़ुल्फ़-ए-शादाब
ये परी हम से भी शीशे में उतारी न गई
मुद्दतें हो गईं बिछड़े हुए तुम से लेकिन
आज तक दिल से मिरे याद तुम्हारी न गई
शाद ओ ख़ंदाँ रहे हम यूँ तो जहाँ में लेकिन
अपनी फ़ितरत से कभी दर्द-शिआरी न गई
सैकड़ों बार मिरे सामने की तौबा मगर
तौबा 'अख़्तर' कि तिरी बादा-गुसारी न गई
ग़ज़ल
अश्क-बारी न मिटी सीना-फ़िगारी न गई
अख़्तर शीरानी