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वक्त शायरी | शाही शायरी

वक्त

69 शेर

वक़्त करता है परवरिश बरसों
हादिसा एक दम नहीं होता

क़ाबिल अजमेरी




राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ
हम को चलना है मगर वक़्त की रफ़्तार के साथ

क़तील शिफ़ाई




वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले

सदा अम्बालवी




शोरिश-ए-वक़्त हुई वक़्त की रफ़्तार में गुम
दिन गुज़रते हैं तिरे ख़्वाब के आसार में गुम

सईद अहमद




ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना
ज़रा उम्र-ए-रफ़्ता को आवाज़ देना

सफ़ी लखनवी




कल हम आईने में रुख़ की झुर्रियाँ देखा किए
कारवान-ए-उम्र-ए-रफ़्ता का निशाँ देखा किए

सफ़ी लखनवी




मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी आता है इंसाँ पर
सितारों की चमक से चोट लगती है रग-ए-जाँ पर

सीमाब अकबराबादी