वक़्त करता है परवरिश बरसों
हादिसा एक दम नहीं होता
क़ाबिल अजमेरी
राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ
हम को चलना है मगर वक़्त की रफ़्तार के साथ
क़तील शिफ़ाई
वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले
सदा अम्बालवी
शोरिश-ए-वक़्त हुई वक़्त की रफ़्तार में गुम
दिन गुज़रते हैं तिरे ख़्वाब के आसार में गुम
सईद अहमद
ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना
ज़रा उम्र-ए-रफ़्ता को आवाज़ देना
सफ़ी लखनवी
कल हम आईने में रुख़ की झुर्रियाँ देखा किए
कारवान-ए-उम्र-ए-रफ़्ता का निशाँ देखा किए
सफ़ी लखनवी
मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी आता है इंसाँ पर
सितारों की चमक से चोट लगती है रग-ए-जाँ पर
सीमाब अकबराबादी