कौन डूबेगा किसे पार उतरना है 'ज़फ़र' 
फ़ैसला वक़्त के दरिया में उतर कर होगा
अहमद ज़फ़र
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                                'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक 
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है
अख़्तर होशियारपुरी
गुज़रते वक़्त ने क्या क्या न चारा-साज़ी की 
वगरना ज़ख़्म जो उस ने दिया था कारी था
अख़्तर होशियारपुरी
वक़्त अब दस्तरस में है 'अख़्तर' 
अब तो मैं जिस जहान तक हो आऊँ
अख़्तर उस्मान
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                                रोके से कहीं हादसा-ए-वक़्त रुका है 
शोलों से बचा शहर तो शबनम से जला है
अली अहमद जलीली
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                                सुब्ह होती है शाम होती है 
उम्र यूँही तमाम होती है
अमीरुल्लाह तस्लीम
वक़्त जब करवटें बदलता है 
फ़ित्ना-ए-हश्र साथ चलता है
अनवर साबरी
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