उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें 
वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले गया
फ़सीह अकमल
किस तरह उम्र को जाते देखूँ 
वक़्त को आँखों से ओझल कर दे
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
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                                मुझे तराश के रख लो कि आने वाला वक़्त 
ख़ज़फ़ दिखा के गुहर की मिसाल पूछेगा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
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                                वक़्त ने किस आग में इतना जलाया है मुझे 
जिस क़दर रौशन था मैं उस से सिवा रौशन हुआ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
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                                रख दिया वक़्त ने आईना बना कर मुझ को 
रू-ब-रू होते हुए भी मैं फ़रामोश रहा
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
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                                वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर 
आदत इस की भी आदमी सी है
गुलज़ार
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                                गया जो हाथ से वो वक़्त फिर नहीं आता 
कहाँ उमीद कि फिर दिन फिरें हमारे अब
हफ़ीज़ जौनपुरी
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