अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना 
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है
बशीर बद्र
वो थे जवाब के साहिल पे मुंतज़िर लेकिन 
समय की नाव में मेरा सवाल डूब गया
बेकल उत्साही
अल्लाह तेरे हाथ है अब आबरू-ए-शौक़ 
दम घुट रहा है वक़्त की रफ़्तार देख कर
बिस्मिल अज़ीमाबादी
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                                वक़्त बर्बाद करने वालों को 
वक़्त बर्बाद कर के छोड़ेगा
दिवाकर राही
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                                वक़्त को बस गुज़ार लेना ही 
दोस्तो कोई ज़िंदगानी है
दिवाकर राही
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                                न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम 
रहा ये वहम कि हम हैं सो वो भी क्या मालूम
फ़ानी बदायुनी
कोई ठहरता नहीं यूँ तो वक़्त के आगे 
मगर वो ज़ख़्म कि जिस का निशाँ नहीं जाता
फ़र्रुख़ जाफ़री
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