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वक्त शायरी | शाही शायरी

वक्त

69 शेर

सदा ऐश दौराँ दिखाता नहीं
गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं

मीर हसन




दिल्ली में आज भीक भी मिलती नहीं उन्हें
था कल तलक दिमाग़ जिन्हें ताज-ओ-तख़्त का

मीर तक़ी मीर




जैसे दो मुल्कों को इक सरहद अलग करती हुई
वक़्त ने ख़त ऐसा खींचा मेरे उस के दरमियाँ

मोहसिन ज़ैदी




वक़्त किस तेज़ी से गुज़रा रोज़-मर्रा में 'मुनीर'
आज कल होता गया और दिन हवा होते गए

मुनीर नियाज़ी




वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी

नासिर काज़मी




सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता

निदा फ़ाज़ली




चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया

परवीन शाकिर