वक़्त जब करवटें बदलता है
फ़ित्ना-ए-हश्र साथ चलता है
मौज-ए-ग़म से ही दिल बहलता है
ये चराग़ आँधियों में जलता है
उस को तूफ़ाँ डुबो नहीं सकता
जो किनारों से बच के चलता है
किस को मालूम है जुनून-ए-हयात
साया-ए-आगही में पलता है
उन की महफ़िल में चल ब-होश-ए-तमाम
कौन गिर कर यहाँ सँभलता है
मैं करूँ क्यूँ न उस की क़द्र 'अनवर'
दिल के साँचे में अश्क ढलता है
ग़ज़ल
वक़्त जब करवटें बदलता है
अनवर साबरी