सारी दुनिया हमें पहचानती है
कोई हम सा भी न तन्हा होगा
अहमद नदीम क़ासमी
दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से
कैसी तन्हाई टपकती है दर ओ दीवार से
अकबर हैदराबादी
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता
अख़्तर शीरानी
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भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला
अलीम मसरूर
मेरा कर्ब मिरी तन्हाई की ज़ीनत
मैं चेहरों के जंगल का सन्नाटा हूँ
अम्बर बहराईची
मिरे घर में तो कोई भी नहीं है
ख़ुदा जाने मैं किस से डर रहा हूँ
अमीर क़ज़लबाश
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माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
अंजुम सलीमी