दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं
तन्हाई कितनी गहरी है इक जाम भर के देख
आदिल मंसूरी
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ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी
आदिल मंसूरी
बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
वगर्ना हम तो अपने घर की वीरानी से मर जाएँ
अफ़ज़ल ख़ान
हम अपनी धूप में बैठे हैं 'मुश्ताक़'
हमारे साथ है साया हमारा
अहमद मुश्ताक़
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तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
लेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता
अहमद मुश्ताक़
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इक सफ़ीना है तिरी याद अगर
इक समुंदर है मिरी तन्हाई
अहमद नदीम क़ासमी
मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है
अहमद नदीम क़ासमी