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जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख | शाही शायरी
jita hai sirf tere liye kaun mar ke dekh

ग़ज़ल

जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख

आदिल मंसूरी

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जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख
इक रोज़ मेरी जान ये हरकत भी कर के देख

मंज़िल यहीं है आम के पेड़ों की छाँव में
ऐ शहसवार घोड़े से नीचे उतर के देख

टूटे पड़े हैं कितने उजालों के उस्तुख़्वाँ
साया-नुमा अँधेरे के अंदर उतर के देख

फूलों की तंग-दामनी का तज़्किरा न कर
ख़ुशबू की तरह मौज-ए-सबा में बिखर के देख

तुझ पर खुलेंगे मौत की सरहद के रास्ते
हिम्मत अगर है उस की गली से गुज़र के देख

दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं
तन्हाई कितनी गहरी है इक जाम भर के देख