तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
मुनव्वर राना
मदहोश ही रहा मैं जहान-ए-ख़राब में
गूंधी गई थी क्या मिरी मिट्टी शराब में
मुज़्तर ख़ैराबादी
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सर-चश्मा-ए-बक़ा से हरगिज़ न आब लाओ
हज़रत ख़िज़र कहीं से जा कर शराब लाओ
नज़ीर अकबराबादी
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कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई
निदा फ़ाज़ली
हम इंतिज़ार करें हम को इतनी ताब नहीं
पिला दो तुम हमें पानी अगर शराब नहीं
नूह नारवी
जिस मुसल्ले पे छिड़किए न शराब
अपने आईन में वो पाक नहीं
क़ाएम चाँदपुरी
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मय पी जो चाहे आतिश-ए-दोज़ख़ से तू नजात
जलता नहीं वो उज़्व जो तर हो शराब में
क़ाएम चाँदपुरी
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