मय-कश हूँ वो कि पूछता हूँ उठ के हश्र में
क्यूँ जी शराब की हैं दुकानें यहाँ कहीं
रिन्द लखनवी
अच्छी पी ली ख़राब पी ली
जैसी पाई शराब पी ली
रियाज़ ख़ैराबादी
ये सर-ब-मोहर बोतलें जो हैं शराब की
रातें हैं इन में बंद हमारे शबाब की
रियाज़ ख़ैराबादी
बे पिए ही शराब से नफ़रत
ये जहालत नहीं तो फिर क्या है
without drinking, to abhor wine so
what is this if not igorant stupidity
साहिर लुधियानवी
शुक्रिया ऐ गर्दिश-ए-जाम-ए-शराब
मैं भरी महफ़िल में तन्हा हो गया
सलाम मछली शहरी
खुली फ़ज़ा में अगर लड़खड़ा के चल न सकें
तो ज़हर पीना है बेहतर शराब पीने से
शहज़ाद अहमद
मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे
हम तुम पिएँ जो मिल के कहीं एक जा शराब
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम