ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
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दर्द-ए-सर है ख़ुमार से मुझ को
जल्द ले कर शराब आ साक़ी
ताबाँ अब्दुल हई
कब पिलावेगा तू ऐ साक़ी मुझे जाम-ए-शराब
जाँ-ब-लब हूँ आरज़ू में मय की पैमाने की तरह
ताबाँ अब्दुल हई
छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए
पियो शराब कि चेहरे पे नूर आ जाए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है
कि माहताब तह-ए-आफ़्ताब आया है
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
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