ज़ाहिद को रट लगी है शराब-ए-तुहूर की
आया है मय-कदे में तो सूझी है दूर की
हफ़ीज़ जौनपुरी
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ज़ाहिद शराब-ए-नाब हो या बादा-ए-तुहूर
पीने ही पर जब आए हराम ओ हलाल क्या
हफ़ीज़ जौनपुरी
फ़स्ल-ए-बहार आई पियो सूफ़ियो शराब
बस हो चुकी नमाज़ मुसल्ला उठाइए
हैदर अली आतिश
मय न हो बू ही सही कुछ तो हो रिंदों के लिए
इसी हीले से बुझेगी हवस-ए-जाम-ए-शराब
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
मय-कशी में रखते हैं हम मशरब-ए-दुर्द-ए-शराब
जाम-ए-मय चलता जहाँ देखा वहाँ पर जम गए
हसरत अज़ीमाबादी
शब जो हम से हुआ मुआफ़ करो
नहीं पी थी बहक गए होंगे
जौन एलिया
हाथ फिर बढ़ रहा है सू-ए-जाम
ज़िंदगी की उदासियों को सलाम
जावेद कमाल रामपुरी
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