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किस से पूछूँ हाए मैं इस दिल के समझाने की तरह | शाही शायरी
kis se puchhun hae main is dil ke samjhane ki tarah

ग़ज़ल

किस से पूछूँ हाए मैं इस दिल के समझाने की तरह

ताबाँ अब्दुल हई

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किस से पूछूँ हाए मैं इस दिल के समझाने की तरह
साथ तिफ़्लाँ के लगा फिरता है दीवाने की तरह

यार के पाँव पे सर रख जी को अपने दीजिए
इस से बेहतर और नहीं होती है मर जाने की तरह

कब पिलावेगा तू ऐ साक़ी मुझे जाम-ए-शराब
जाँ-ब-लब हूँ आरज़ू में मय की पैमाने की तरह

मस्त आता है पिए मय आज वो क़ातिल मिरा
कुछ नज़र आती है मुझ को अपने जी जाने की तरह

शम्अ-रू के गिर्द फिरती हैं सदा क़ुर्बान हो
चश्म मेरी पर लगा मिज़्गाँ के परवाने की तरह

बाग़ में गुल ने किया अपने तईं लोहूलुहान
देख उस ग़ुंचा-दहन के पान के खाने की तरह

फ़स्ल-ए-गुल आई है 'ताबाँ' घर में क्या बैठा है यूँ
कर गरेबाँ चाक जा सहरा में दीवाने की तरह