पूछना चाँद का पता 'आज़र'
जब अकेले में रात मिल जाए
बलवान सिंह आज़र
रात को रोज़ डूब जाता है
चाँद को तैरना सिखाना है
बेदिल हैदरी
हर तरफ़ थी ख़ामोशी और ऐसी ख़ामोशी
रात अपने साए से हम भी डर के रोए थे
भारत भूषण पन्त
रात की बात का मज़कूर ही क्या
छोड़िए रात गई बात गई
चराग़ हसन हसरत
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शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को
ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का
दाग़ देहलवी
इक रात वो गया था जहाँ बात रोक के
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
फ़रहत एहसास
बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम
जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई
फ़िराक़ गोरखपुरी