शब के सन्नाटे में ये किस का लहू गाता है
सरहद-ए-दर्द से ये किस की सदा आती है
अली सरदार जाफ़री
रात आई है बलाओं से रिहाई देगी
अब न दीवार न ज़ंजीर दिखाई देगी
अनवर मसूद
अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी
तिरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर सँभल न जाए
as yet the night does linger on do not remove your veil
lest your besotten follower re-gains stability
अनवर मिर्ज़ापुरी
था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को
मैं भी किवाड़ खोलने फ़ौरन नहीं गया
अनवर शऊर
आने वाली आ नहीं चुकती जाने वाली जा भी चुकी
वैसे तो हर जाने वाली रात थी आने वाली रात
अताउर्रहमान जमील
हर एक रात को महताब देखने के लिए
मैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए
अज़हर इनायती
हमारे ख़्वाब चोरी हो गए हैं
हमें रातों को नींद आती नहीं है
बख़्श लाइलपूरी