वो शख़्स जिस को दिल ओ जाँ से बढ़ के चाहा था
बिछड़ गया तो ब-ज़ाहिर कोई मलाल नहीं
बशीर बद्र
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
बासिर सुल्तान काज़मी
ये तासीर मोहब्बत है कि टपका
हमारा ख़ूँ तुम्हारी गुफ़्तुगू से
बयान मेरठी
दिल मोहब्बत से भर गया 'बेख़ुद'
अब किसी पर फ़िदा नहीं होता
बेख़ुद देहलवी
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता
न कुछ मरने का ग़म होता न जीने का मज़ा होता
चकबस्त ब्रिज नारायण
ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती
न तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता
दाग़ देहलवी
इश्क़ ने जिस दिल पे क़ब्ज़ा कर लिया
फिर कहाँ उस में नशात ओ ग़म रहे
दत्तात्रिया कैफ़ी