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क़रार पाते हैं आख़िर हम अपनी अपनी जगह | शाही शायरी
qarar pate hain aaKHir hum apni apni jagah

ग़ज़ल

क़रार पाते हैं आख़िर हम अपनी अपनी जगह

बासिर सुल्तान काज़मी

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क़रार पाते हैं आख़िर हम अपनी अपनी जगह
ज़ियादा रह नहीं सकता कोई किसी की जगह

बनानी पड़ती है हर शख़्स को जगह अपनी
मिले अगरचे ब-ज़ाहिर बनी-बनाई जगह

हैं अपनी अपनी जगह मुतमइन जहाँ सब लोग
तसव्वुरात में मेरे है एक ऐसी जगह

गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह

किए हुए है फ़रामोश तू जिसे 'बासिर'
वही है अस्ल में तेरा मक़ाम तेरी जगह