ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं 
मिरे बदन पे किसी दूसरे की शाल नहीं 
उदास हो गई एक फ़ाख़्ता चहकती हुई 
किसी ने क़त्ल किया है ये इंतिक़ाल नहीं 
तमाम उम्र ग़रीबी में बा-वक़ार रहे 
हमारे अहद में ऐसी कोई मिसाल नहीं 
वो ला-शरीक है उस का कोई शरीक कहाँ 
वो बे-मिसाल है उस की कोई मिसाल नहीं 
मैं आसमान से टूटा हुआ सितारा हूँ 
कहाँ मिली थी ये दुनिया मुझे ख़याल नहीं 
वो शख़्स जिस को दिल ओ जाँ से बढ़ के चाहा था 
बिछड़ गया तो ब-ज़ाहिर कोई मलाल नहीं
        ग़ज़ल
ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं
बशीर बद्र

