उठ गई हैं सामने से कैसी कैसी सूरतें
रोइए किस के लिए किस किस का मातम कीजिए
हैदर अली आतिश
मौत से पहले जहाँ में चंद साँसों का अज़ाब
ज़िंदगी जो क़र्ज़ तेरा था अदा कर आए हैं
हैदर क़ुरैशी
दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी
मौत आएगी तो ऐ हमदम शिफ़ा हो जाएगी
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
अपने काँधों पे लिए फिरता हूँ अपनी ही सलीब
ख़ुद मिरी मौत का मातम है मिरे जीने में
हनीफ़ कैफ़ी
ऐ हिज्र वक़्त टल नहीं सकता है मौत का
लेकिन ये देखना है कि मिट्टी कहाँ की है
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
ऐ अजल एक दिन आख़िर तुझे आना है वले
आज आती शब-ए-फ़ुर्क़त में तो एहसाँ होता
इमाम बख़्श नासिख़
ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-जहाँ का फ़र्क़ न पूछ
मौत जब आई सब बराबर था
इम्दाद इमाम असर