लफ़्ज़ तेरी याद के सब बे-सदा कर आए हैं
सारे मंज़र आइनों से ख़ुद मिटा कर आए हैं
जल चुके सारी महकती ख़्वाहिशों के जब गुलाब
मौसमों के दुख निगाहों में जला कर आए हैं
एक लम्हे में कई सदियों के नाते तोड़ कर
सोचते हैं अपने हाथों से ये क्या कर आए हैं
रास्ते तो खो चुके थे अपनी हर पहचान तक
हम जनाज़े मंज़िलों के ख़ुद उठा कर आए हैं
सारे रिश्ते झूट हैं सारे तअल्लुक़ पुर-फ़रेब
फिर भी सब क़ाएम रहें ये बद-दुआ कर आए हैं
हर छलकते अश्क में तस्वीर झलकेगी तिरी
नक़्श पानी पर तिरा अन-मिट बना कर आए हैं
मौत से पहले जहाँ में चंद साँसों का अज़ाब
ज़िंदगी जो क़र्ज़ तेरा था अदा कर आए हैं
सारे शिकवे भूल कर आओ मिलें 'हैदर' उन्हें
वो गए लम्हों को फिर वापस बुला कर लाए हैं
ग़ज़ल
लफ़्ज़ तेरी याद के सब बे-सदा कर आए हैं
हैदर क़ुरैशी