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मेरे सर में जो रात चक्कर था | शाही शायरी
mere sar mein jo raat chakkar tha

ग़ज़ल

मेरे सर में जो रात चक्कर था

इम्दाद इमाम असर

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मेरे सर में जो रात चक्कर था
उस के ज़ानू पे ग़ैर का सर था

अपने घर उन को क्या बुलाते हम
बोरिया भी नहीं मयस्सर था

ज़ब्त-ए-दिल पर भी उस की महफ़िल में
अपना रूमाल अश्क से तर था

जान देने में सोच क्या करते
मुफ़्लिसी पर भी दिल तवंगर था

ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-जहाँ का फ़र्क़ न पूछ
मौत जब आई सब बराबर था

आप जब तक न ले चुके थे दिल
कुछ मिज़ाज और बंदा-परवर था

हिज्र लाहिक़ हुआ विसाल के ब'अद
क्या ही उल्टा मिरा मुक़द्दर था

जौर-ए-आदा की ताब क्या लाता
दिल-ए-कम-बख़्त नाज़-परवर था

सोहबत-ए-हूर से हुई नफ़रत
मैं जो तेरी अदा का ख़ूगर था

है 'असर' या नहीं ख़ुदा जाने
सुनते हैं उस का हाल अबतर था