लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं
रईस फ़रोग़
कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए
रहमान फ़ारिस
मौत आ जाए क़ैद में सय्याद
आरज़ू हो अगर रिहाई की
रिन्द लखनवी
रोते जो आए थे रुला के गए
इब्तिदा इंतिहा को रोते हैं
रियाज़ ख़ैराबादी
मिरी नाश के सिरहाने वो खड़े ये कह रहे हैं
इसे नींद यूँ न आती अगर इंतिज़ार होता
सफ़ी लखनवी
मौत कहते हैं जिस को ऐ 'साग़र'
ज़िंदगी की कोई कड़ी होगी
साग़र सिद्दीक़ी
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते
साक़िब लखनवी