किसी ख़याल किसी ख़्वाब के लिए 'ख़ुर्शीद'
दिया दरीचे में रक्खा था दिल जलाया था
ख़ुर्शीद रब्बानी
मैं हूँ इक पैकर-ए-ख़याल-ओ-ख़्वाब
और कितनी बड़ी हक़ीक़त हूँ
ख़ुर्शीद रब्बानी
वाए नादानी कि वक़्त-ए-मर्ग ये साबित हुआ
ख़्वाब था जो कुछ कि देखा जो सुना अफ़्साना था
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
कभी दिखा दे वो मंज़र जो मैं ने देखे नहीं
कभी तो नींद में ऐ ख़्वाब के फ़रिश्ते आ
कुमार पाशी
दिल मिरा ख़्वाब-गाह-ए-दिलबर है
बस यही एक सोने का घर है
लाला माधव राम जौहर
ख़्वाब में नाम तिरा ले के पुकार उठता हूँ
बे-ख़ुदी में भी मुझे याद तिरी याद की है
लाला माधव राम जौहर
ख़्वाब का रिश्ता हक़ीक़त से न जोड़ा जाए
आईना है इसे पत्थर से न तोड़ा जाए
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद