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दिल मिरा ख़्वाब-गाह-ए-दिलबर है | शाही शायरी
dil mera KHwab-gah-e-dilbar hai

ग़ज़ल

दिल मिरा ख़्वाब-गाह-ए-दिलबर है

लाला माधव राम जौहर

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दिल मिरा ख़्वाब-गाह-ए-दिलबर है
बस यही एक सोने का घर है

ज़ुल्फ़ें मुँह पर हैं मुँह है ज़ुल्फ़ों में
रात भर सुब्ह शाम दिन भर है

चश्म-ए-इंसाफ़ से नज़ारा कर
एक क़तरा यहाँ समुंदर है

बहुत ईज़ा उठाई फ़ुर्क़त की
अब नहीं इख़्तियार दिल पर है

देख कर चाँद सा तुम्हारा मुँह
आईना मेरी तरह शश्दर है

दिल मिलाऊँ मैं क्या तिरे दिल से
एक शीशा है एक पत्थर है