हुए हैं बंद दिशाओं के सारे रस्ते आ
अँधेरा छाने लगा लौट कर परिंदे आ
मैं तेरी सारी तमाज़त को जज़्ब कर लूँगा
तू आफ़्ताब कभी मेरे दिल में बुझने आ
कभी दिखा दे वो मंज़र जो मैं ने देखे नहीं
कभी तो नींद में ऐ ख़्वाब के फ़रिश्ते आ
यहाँ तो कब से अंधेरों में ग़र्क़ है दुनिया
इधर जो आ तो सितारों की शाल ओढ़े आ
न चुपके चुपके सुलग जी को अपने हल्का कर
तुझे ये कौन सा दुख है कभी बताने आ
बड़ा सुकून मिलेगा तुझे यहाँ आ कर
जो हो सके तो कभी मेरे दिल में रहने आ
दहकता शो'ला सा मैं एक दश्त हूँ 'पाशी'
अगर घटा है तू सावन की तो बरसने आ
ग़ज़ल
हुए हैं बंद दिशाओं के सारे रस्ते आ
कुमार पाशी