तिरे कानों में कोई बात बतानी थी हमें
दिल में सखियों के तिरी आग लगानी थी हमें
हमें बाज़ार ने ठुकराया तो घर लौटे हैं
इक मोहब्बत तो बहर-ए-हाल निभानी थी हमें
चाँदनी आप की आँखों में भली लगती है
हो इजाज़त तो ज़रा उम्र बितानी थी हमें
रंग दरकार थे हम को तिरी ख़ामोशी के
एक आवाज़ की तस्वीर बनानी थी हमें
हमें सिगरेट भी तो पीनी थी निकल कर घर से
अपनी उँगली पे ये दुनिया भी नचानी थी हमें
तज़्किरा इस का नहीं इश्क़ बचाया किस ने
मसअला ये था कि अब जान बचानी थी हमें
आज हम उस के दुपट्टे की महक से हैं बंधे
वही लड़की जो कभी दुश्मन-ए-जानी थी हमें
ग़ज़ल
तिरे कानों में कोई बात बतानी थी हमें
नाज़िर वहीद