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तिरे कानों में कोई बात बतानी थी हमें | शाही शायरी
tere kanon mein koi baat batani thi hamein

ग़ज़ल

तिरे कानों में कोई बात बतानी थी हमें

नाज़िर वहीद

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तिरे कानों में कोई बात बतानी थी हमें
दिल में सखियों के तिरी आग लगानी थी हमें

हमें बाज़ार ने ठुकराया तो घर लौटे हैं
इक मोहब्बत तो बहर-ए-हाल निभानी थी हमें

चाँदनी आप की आँखों में भली लगती है
हो इजाज़त तो ज़रा उम्र बितानी थी हमें

रंग दरकार थे हम को तिरी ख़ामोशी के
एक आवाज़ की तस्वीर बनानी थी हमें

हमें सिगरेट भी तो पीनी थी निकल कर घर से
अपनी उँगली पे ये दुनिया भी नचानी थी हमें

तज़्किरा इस का नहीं इश्क़ बचाया किस ने
मसअला ये था कि अब जान बचानी थी हमें

आज हम उस के दुपट्टे की महक से हैं बंधे
वही लड़की जो कभी दुश्मन-ए-जानी थी हमें