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हम अपने दुख को गाने लग गए हैं | शाही शायरी
hum apne dukh ko gane lag gae hain

ग़ज़ल

हम अपने दुख को गाने लग गए हैं

मदन मोहन दानिश

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हम अपने दुख को गाने लग गए हैं
मगर इस में ज़माने लग गए हैं

किसी की तर्बियत का है करिश्मा
ये आँसू मुस्कुराने लग गए हैं

कहानी रुख़ बदलना चाहती है
नए किरदार आने लग गए हैं

ये हासिल है मिरी ख़ामोशियों का
कि पत्थर आज़माने लग गए हैं

जिन्हें हम मंज़िलों तक ले के आए
वही रस्ता बताने लग गए हैं

शराफ़त रंग दिखलाती है 'दानिश'
सभी दुश्मन ठिकाने लग गए हैं