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आह भी इक कोशिश-ए-नाकाम है मेरे लिए | शाही शायरी
aah bhi ek koshish-e-nakaam hai mere liye

ग़ज़ल

आह भी इक कोशिश-ए-नाकाम है मेरे लिए

मुईन अहसन जज़्बी

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आह भी इक कोशिश-ए-नाकाम है मेरे लिए
ऐसी सहबा-ए-कुहन और ख़ाम है मेरे लिए

ज़िंदगी इक शोरिश-ए-आलाम है मेरे लिए
जो नफ़स है गर्दिश-ए-अय्याम है मेरे लिए

शायरी ही वज्ह-ए-नंग-ओ-नाम है मेरे लिए
और जो कुछ है वो सब इल्ज़ाम है मेरे लिए

मेरी अर्ज़-ए-शौक़ बे-म'अनी है उन के वास्ते
उन की ख़ामोशी भी इक पैग़ाम है मेरे लिए

ये मिरी आशुफ़्ता-ए-हाली ये मिरी आवारगी
जैसे सारी गर्दिश-ए-अय्याम है मेरे लिए

किस क़दर मासूम कैसी गर्म कितनी दिल-नवाज़
वो निगाह-ए-नाज़ जो बद-नाम है मेरे लिए

आज क्या होने को है ऐ गर्दिश-ए-हफ़्त-आसमाँ
हर सितारा लर्ज़ा-बर-अंदाम है मेरे लिए