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इश्क शायरी | शाही शायरी

इश्क

422 शेर

तुझ में और मुझ में तअल्लुक़ है वही
है जो रिश्ता साज़ और मिज़राब में

बशर नवाज़




आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
बेवफ़ाई कभी कभी करना

बशीर बद्र




अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो

बशीर बद्र




अजीब रात थी कल तुम भी आ के लौट गए
जब आ गए थे तो पल भर ठहर गए होते

बशीर बद्र




भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई

बशीर बद्र




इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे

बशीर बद्र




ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला

बशीर बद्र