दोस्तों से मुलाक़ात की शाम है
ये सज़ा काट कर अपने घर जाऊँगा
मज़हर इमाम
अपना घर आने से पहले
इतनी गलियाँ क्यूँ आती हैं
मोहम्मद अल्वी
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घर में क्या आया कि मुझ को
दीवारों ने घेर लिया है
मोहम्मद अल्वी
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रात पड़े घर जाना है
सुब्ह तलक मर जाना है
मोहम्मद अल्वी
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शरीफ़े के दरख़्तों में छुपा घर देख लेता हूँ
मैं आँखें बंद कर के घर के अंदर देख लेता हूँ
मोहम्मद अल्वी
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उन दिनों घर से अजब रिश्ता था
सारे दरवाज़े गले लगते थे
मोहम्मद अल्वी
अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या
मुनीर नियाज़ी