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घर शायरी | शाही शायरी

घर

41 शेर

तुम परिंदों से ज़ियादा तो नहीं हो आज़ाद
शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो

इरफ़ान सिद्दीक़ी




गुरेज़-पा है नया रास्ता किधर जाएँ
चलो कि लौट के हम अपने अपने घर जाएँ

जमाल ओवैसी




अब तक न ख़बर थी मुझे उजड़े हुए घर की
वो आए तो घर बे-सर-ओ-सामाँ नज़र आया

जोश मलीहाबादी




कब आओगे ये घर ने मुझ से चलते वक़्त पूछा था
यही आवाज़ अब तक गूँजती है मेरे कानों में

कफ़ील आज़र अमरोहवी




उस की आँखों में उतर जाने को जी चाहता है
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है

कफ़ील आज़र अमरोहवी




'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा

कैफ़ भोपाली




अब याद कभी आए तो आईने से पूछो
'महबूब-ख़िज़ाँ' शाम को घर क्यूँ नहीं जाते

महबूब ख़िज़ां